पी. वी. नरसिम्हा राव की जीवनी: P V Narasimha Rao biography in Hindi
पी. वी. नरसिम्हा राव की जीवनी: P V Narasimha Rao biography in Hindi
पामुलपर्ती वेंकट नरसिम्हा राव, जिन्हें पी. वी. नरसिम्हा राव के नाम से जाना जाता है, भारत के नौवें प्रधानमंत्री और एक दूरदर्शी राजनेता, विद्वान, और साहित्यकार थे। 1991 से 1996 तक अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान, उन्होंने भारत को आर्थिक संकट से उबारकर वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित किया। उनके नेतृत्व में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों ने भारत को उदारीकरण, वैश्वीकरण, और आधुनिकता की राह पर ले जाकर इतिहास रचा।
प्रारंभिक जीवन: ग्रामीण परिवेश में शुरुआत
पी. वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को तेलंगाना (तब हैदराबाद रियासत) के करीमनगर जिले के लकनेपल्ली गाँव में हुआ था। वे एक मध्यमवर्गीय तेलुगु ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता, पामुलपर्ती रघव राव, एक किसान और जमींदार थे, जबकि उनकी माता, रुक्मिणम्मा, एक गृहिणी थीं। नरसिम्हा राव अपने नौ भाई-बहनों में से एक थे। उनका बचपन ग्रामीण परिवेश में बीता, जहाँ उन्होंने प्रकृति, संस्कृति, और सामुदायिक जीवन के मूल्यों को आत्मसात किया।
नरसिम्हा राव बचपन से ही मेधावी और जिज्ञासु थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करीमनगर के एक स्थानीय स्कूल में शुरू की और बाद में वारंगल के स्कूलों में पढ़ाई की। उनकी रुचि पढ़ने और विचार-विमर्श में थी। कम उम्र में ही उन्होंने तेलुगु साहित्य, इतिहास, और दर्शन में गहरी रुचि विकसित कर ली। उनकी माता ने उन्हें धार्मिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी, जो उनके जीवन में हमेशा मार्गदर्शक बने रहे।
शिक्षा: बौद्धिकता का आधार
नरसिम्हा राव ने अपनी उच्च शिक्षा उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से शुरू की, जहाँ उन्होंने कला स्नातक (बीए) की डिग्री हासिल की। उनकी पढ़ाई का मुख्य विषय इतिहास और साहित्य था। इसके बाद, उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री (एलएलबी) प्राप्त की और वकालत शुरू की। उनकी शिक्षा ने उन्हें एक गहरी बौद्धिक नींव प्रदान की, जो बाद में उनकी राजनीतिक और साहित्यिक यात्रा में महत्वपूर्ण साबित हुई।
नरसिम्हा राव को कई भाषाओं का ज्ञान था, जिनमें तेलुगु, हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, उर्दू, संस्कृत, और फ्रेंच शामिल थीं। उनकी भाषाई क्षमता ने उन्हें एक प्रभावी वक्ता, लेखक, और कूटनीतिज्ञ बनाया। वे तेलुगु साहित्य के प्रति विशेष रूप से उत्साही थे और उन्होंने कई तेलुगु कविताओं और रचनाओं का अनुवाद किया। उनकी यह बौद्धिकता उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग करती थी।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
नरसिम्हा राव ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे महात्मा गांधी के अहिंसा और सविनय अवज्ञा के सिद्धांतों से गहरे प्रभावित थे। 1930 के दशक में, उन्होंने हैदराबाद रियासत में निज़ाम शासन के खिलाफ चल रहे आंदोलन में भाग लिया। उस समय, हैदराबाद रियासत में निज़ाम का शासन अत्यंत दमनकारी था, और स्थानीय लोग अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।
नरसिम्हा राव ने हैदराबाद स्टेट कांग्रेस के साथ मिलकर निज़ाम के खिलाफ प्रदर्शन और आंदोलन किए। इस दौरान, उन्होंने कई बार जेल यात्राएँ कीं और निज़ाम के अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाई। उनकी यह सक्रियता उन्हें एक युवा नेता के रूप में स्थापित करने में मददगार साबित हुई। स्वतंत्रता के बाद, जब 1948 में हैदराबाद रियासत को भारतीय संघ में शामिल किया गया, नरसिम्हा राव ने इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
स्वतंत्रता के बाद, नरसिम्हा राव ने अपनी राजनीतिक यात्रा को और गति दी। 1957 में, उन्होंने आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में हनमकोंडा सीट से जीत हासिल की और विधायक बने। इसके बाद, वे 1962, 1967, और 1972 में भी विधायक चुने गए। इस दौरान, उन्होंने आंध्र प्रदेश सरकार में विभिन्न मंत्रालयों में काम किया, जिनमें शिक्षा, कानून, और गृह मंत्रालय शामिल थे।
उनके प्रशासनिक कौशल और नीतिगत समझ ने उन्हें आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक मजबूत स्थान दिलाया। 1971 में, नरसिम्हा राव ने लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश की हनमकोंडा सीट से जीत हासिल की और पहली बार संसद सदस्य बने। 1977 और 1980 में भी वे लोकसभा के लिए चुने गए।
1980 में, जब इंदिरा गांधी दोबारा प्रधानमंत्री बनीं, नरसिम्हा राव को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। उन्होंने विदेश मंत्रालय (1980-1984), गृह मंत्रालय, और मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभागों का नेतृत्व किया। विदेश मंत्री के रूप में, उन्होंने भारत की कूटनीतिक स्थिति को मजबूत किया और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनकी विदेश नीति की समझ और कूटनीतिक कौशल ने भारत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी।
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1991-1996)
1991 में, राजीव गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस पार्टी ने अप्रत्याशित रूप से नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना। उस समय भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुके थे, और देश को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से ऋण लेना पड़ा था। नरसिम्हा राव ने इस चुनौती को स्वीकार किया और भारत को आर्थिक संकट से उबारने के लिए कठोर निर्णय लिए।